Sai Chalisa Lyrics in Hindi | श्री साँई चालीसा लिरिक्स
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|| Shri Saee Chalisa In Hindi || श्री साँई चालीसा हिंदी सहित ||
श्री साँई के चरणों में, अपना शीश नवाऊं मैं
कैसे शिरडी साँई आए, सारा हाल सुनाऊ मैं (1)
कौन है माता, पिता कौन है, यह न किसी ने भी जाना
कहां जन्म साँई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना (2)
कोई कहे अयोध्या के, ये रामचन्द्र भगवान हैं
कोई कहता साँई बाबा, पवन-पुत्र हनुमान हैं (3)
कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानन हैं साँई।
कोई कहता गोकुल-मोहन, देवकी नन्द्न हैं साँई (4)
शंकर समझ भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते
कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साँई की करते (5)
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साँई हैं सच्चे भगवान
बड़े दयालु, दीनबन्धु, कितनों को दिया जीवनदान (6)
कई बरस पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात
किसी भाग्यशाली की शिरडी में, आई थी बारात (7)
आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुनदर
आया, आकर वहीं बद गया, पावन शिरडी किया नगर (8)
कई दिनों तक रहा भटकता, भिक्षा मांगी उसने दर-दर।
और दिखाई ऎसी लीला, जग में जो हो गई अमर (9)
जैसे-जैसे उमर बढ़ी, बढ़ती ही वैसे गई शान
घर-घर होने लगा नगर में, साँई बाबा का गुणगान (10)
दिग दिगन्त में लगा गूंजने, फिर तो साँई जी का नाम
दीन मुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम (11)
बाबा के चरणों जाकर, जो कहता मैं हूं निर्धन
दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते द:ख के बंधन (12)
कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझ को संतान।
एवं अस्तु तब कहकर साँई, देते थे उसको वरदान (13)
स्वयं दु:खी बाबा हो जाते, दीन-दुखी जन का लख हाल
अंत:करन भी साँई का, सागर जैसा रहा विशाल (14)
भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत बड़ा धनवान
माल खजाना बेहद उसका, केवल नहीं रही संतान (15)
लगा मनाने साँईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो
झंझा से झंकृत नैया को, तुम ही मेरी पार करो (16)
कुलदीपक के बीना अंधेरा, छया हुआ घर में मेरे
इसे लीये आया हूं बाबा होकर शरनागत तेरे (17)
कुलदीपक के अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया
आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया (18)
दे दे मुझको पुत्र दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर
और किसी की आश न मुझको, सिर्फ भरोसा है तुम पर (19)
अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में धर के शीश
तब प्रसन्न होकर बाबा ने दिया भक्त को यह आशीष (20)
अल्ला भला करेगा तेरा, पुत्र जन्म हो तेरे घर
कृपा रहे तुम पर उसकी, और तेरे उस बालक पर (21)
अब तक नहीं किसी ने पाया, साँई की कृपा का पार
पुत्र रतन दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार (22)
तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार
सांच को आंच नहीं है कोई, सदा झूठ की होती हार (23)
मैं हूं सदा सहारे उसके सदा रहूंगा उसका दास
साँई जैसा प्रभु मिला है इतनी की कम है क्या आद (24)
मेरा भी दिन था इक ऎसा, मिलती नहीं मुझे थी रोटी
तन पर कपड़ा दूर रहा था, शेष रही नन्ही सी लंगोटी (25)
सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था
दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नि बरसाता था (26)
धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलम्ब न था
बिना भिखारी में दुनिया में, दर-दर ठोकर खाता था (27)
ऐसे में इक मित्र मिला जो, परम भक्त साँई का था
जंजालों से मुक्त, मगर इस, जगती में वह मुझसा था (28)
बाबा के दर्शन के खातिर, मिल दोनों ने किया विचार
साँई जैसे दयामूर्ति के दर्शन को हो गए तैयार (29)
पावन शिरडी नगर में जाकर, देखी मतवाली मूर्ति
धन्य जन्म हो गया कि हमने, जब धेकहि साईं की सूरति (30)
जबसे किये है दर्शन हमने, दु:ख सारा काफूर हो गया
संकट सारे मिठे और, विपदाओं का अंत हो गया (31)
मान और सम्मान मिला, भिक्षा में हमको बाबा से
प्रति बिंबित हो उठे जगत में, हम साँई की आभा से (32)
बाबा ने सम्मान दिया है, मान दिया इस जीवन में
इसका ही सम्बल ले मैं, हंसता जाऊंगा जीवन में (33)
साँई की लीला का मेरे, मन पर ऎसा असर हुआ
लगता, जगती के कण- कण मैं, जैसे हो वह भरा हुआ (34)
”काशीराम” बाबा का भक्त, इस शिरडी में रहता था
मैं साँई का साँई मेरा, वह दुनिया से कहता था (35)
सींकर स्वयं वस्त्र बेचता, ग्राम नगर बाजारों में
झंकृत उसकी हृद तंत्री थी, साँई की झनकारों में (36)
स्तब्ध निशा थी, थे सोये, रजनी आंचल में चांद सितारे
नहीं सूझता रहा हाथ, को हाथ तिमिर के मारे (37)
वस्त्र बेचकर लौट रहा था, हाय! हाट से काशी
विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन, आता था वह एकाकी (38)
घेर राह में खड़े हो गए, उसे कुटिल अन्यायी
मारो काटो लूटो इसको, ही ध्वनि पड़ी सुनाई (39)
लूट पीटकर उसे वहां से, कुटिल गये चम्पत हो
आघातों से मर्माहत हो, उसने दी थी संज्ञा खो (40)
बहुत देर तक पड़ा रहा वह, वहीं उसी हालत में
जाने कब कुच होश हो उता, उसको केसी पलक में (41)
अनजाने ही उसके मुंह से, निकल पड़ा था साईं
जिसकी प्रतिध्वनि शिर्डी में, बाबा को पड़ी सुनाई (42)
क्षुब्ध उठा हो मानस उनका, बाबा गए विकल हो
लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सम्मुख हो (43)
उन्मादी से इधर-उधर, तब बाबा लगे भटकने
सम्मुख चीजें जो भी आईं, उनको लगे पटकने (44)
और धधकते अंगारों में, बाबा ने अपना कर डाला
हुए सशंकित सभी वहां, लख ताण्डव नृत्य निराला (45)
समझ गए सब लोग कि कोई, भक्त पड़ा संकट में
क्षुभित खड़े थे सभी वहां पर पड़े हुए विस्मय में (46)
उसे बचाने के ही खातिर, बाबा आज विकल हैं
उसकी ही पीड़ा से पीड़ित, उनका अन्त:स्थल है (47)
इतने में ही विधि ने अपनी, विचित्रता दिखलाई
लख कर जिसको जनता की, श्रद्धा-सरिता लहराई (48)
लेकर कर संज्ञाहीन भक्त को गाड़ी एक वहां आई
सम्मुख अपने देख भक्त को साईं की आंखें भर आईं (49)
शान्त धीर गम्भीर सिन्धु-सा बाबा का अन्त:स्थल
आज न जाने क्यों रह-रह कर हो जाता था चंचल (50)
आज दया की मूर्ति स्वयं था, बना हुआ उपचारी
और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी (51)
आज भक्ति की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था “काशी”
उसके ही दर्शन के खातिर, थे उमड़े नगर-निवासी (52)
जब भी और जहां भी कोई, भक्त पड़े संकट में
उसकी रक्षा करने बाबा, आते हैं पलभर में (53)
युग-युग का है सत्य यह, नहीं कोई नई कहानी
आपात ग्रस्त भक्त जब होता, आते खुद अन्तर्यामी (54)
भेद-भाव से परे पुजारी, मानवता के थे साईं
जितने प्यारे हिन्दु-मुस्लिम, उतने ही थे सिक्ख ईसाई (55)
भेद-भाव मन्दिर-मस्जिद का, तोड़-फोड़ बाबा ने डाला
राम-रहीम सभी उनके थे, कृष्ण-करीम-अल्लाहताला (56)
घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा, मस्जिद का कोना-कोना
मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम, प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना (57)
चमत्कार था कितना सुंदर, परिचय इस काया ने दी
और नीम कडुवाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी (58)
सबको स्नेह दिया साईं ने, सबको सन्तुल प्यार किया
जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उनको वही दिया (59)
ऐसे स्नेह शील भाजन का, नाम सदा जो जपा करे
पर्वत जैसा दु:ख न क्यों हो, पलभर में वह दूर टरे (60)
साईं जैसा दाता हमने, अरे नहीं देखा कोई
जिसके केवल दर्शन से ही, सारी विपदा दूर हो गई (61)
तन में साईं, मन में साईं, साईं-साईं भजा करो
अपने तन की सुधि-बुधि खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो (62)
जब तू अपनी सुधि तज, बाबा की सुधि किया करेगा
और रात-दिन बाबा, बाबा ही तू रटा करेगा (63)
तो बाबा को अरे! विवश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी
तेरी हर इच्छा बाबा को, पूरी ही करनी होगी (64)
जंगल-जंगल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को
एक जगह केवल शिर्डी में, तू पायेगा बाबा को (65)
धन्य जगत में प्राणी है वह, जिसने बाबा को पाया
दु:ख में सुख में प्रहर आठ हो, साईं का ही गुण गाया (66)
गिरें संकटों के पर्वत, चाहे बिजली ही टूट पड़े
साईं का ले नाम सदा तुम, सम्मुख सब के रहो अड़े (67)
इस बूढ़े की करामात सुन, तुम हो जाओगे हैरान
दंग रह गये सुनकर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान (68)
एक बार शिर्डी में साधू, ढ़ोंगी था कोई आया
भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया (69)
जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर, करने लगा वहां भाषण
कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन (70)
औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शक्ति
इसके सेवन करने से ही, हो जाती दु:ख से मुक्ति (71)
अगर मुक्त होना चाहो तुम, संकट से बीमारी से
तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से हर नारी से (72)
लो खरीद तुम इसको इसकी, सेवन विधियां हैं न्यारी
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह, गुण उसके हैं अति भारी (73)
जो है संतति हीन यहां यदि, मेरी औषधि को खायें
पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे वह मुंह मांगा फल पायें (74)
औषधि मेरी जो न खरीदे, जीवन भर पछतायेगा
मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहां आ पायेगा (75)
दुनियां दो दिन का मेला है, मौज शौक तुम भी कर लो
गर इससे मिलता है, सब कुछ तुम भी इसको ले लो (76)
हैरानी बढ़ती जनता की लख इसकी कारस्तानी
प्रमुदित वह भी मन ही मन था, लख लोगो की नादानी (77)
खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौड़कर सेवक एक
सुनकर भृकुटि तनी और, विस्मरण हो गया सभी विवेक (78)
हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ
या शिर्डी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ (79)
मेरे रहते भोली-भाली, शिर्डी की जनता को
कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को (80)
पल भर में ही ऐसे ढ़ोंगी, कपटी नीच लुटेरे को
महानाश के महागर्त में, पहुंचा दूं जीवन भर को (81)
तनिक मिला आभास मदारी क्रूर कुटिल अन्यायी को
काल नाचता है अब सिर पर गुस्सा आया साईं को (82)
पल भर में सब खेल बन्द कर भागा सिर पर रखकर पैर
सोच था मन ही मन, भगवान नहीं है अब खैर (83)
सच है साईं जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में
अंश ईश का साईंबाबा, उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में (84)
स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभूषण धारण कर
बढ़ता इस दुनिया में जो भी, मानव-सेवा के पथ पर (85)
वही जीत लेता है जगती के, जन-जन का अन्त:स्थल
उसकी एक उदासी ही जग को कर देती है विह्वल (86)
जब-जब जग में भार पाप का, बढ़ बढ़ ही जाता है
उसे मिटाने के ही खातिर, अवतारी ही आता है (87)
पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के
दूर भगा देता दुनिया के, दानव को क्षण भर में (88)
स्नेह सुधा की धार बरसने, लगती है इस दुनिया में
गले परस्पर मिलने लगते, हैं जन-जन आपस में (89)
ऐसे ही अवतारी साईं, मृत्युलोक में आकर
समता का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप मिटाकर (90)
नाम द्वारका मस्जिद का, रक्खा शिर्डी में साईं ने
दाप, ताप, सन्ताप मिटाया, जो कुछ आया साईं ने (91)
सदा याद में मस्त राम की, बैठे रहते थे साईं
पहर आठ ही राम नाम का, भजते रहते थे साईं (92)
सूखी-रूखी, ताजी-बासी, चाहे या होवे पकवान
सदा प्यार के भूखे साईं की, खातिर थे सभी समान (93)
स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे
बड़े चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे (94)
कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग में जाते थे
प्रमुदित मन निरख प्रकृति, छटा को वे होते थे (95)
रंग-बिरंगे पुष्प बाग के, मन्द-मन्द हिल-डुल करके
बीहड़ वीराने मन में भी, स्नेह सलिल भर जाते थे (96)
ऐसी सुमधुर बेला में भी, दु:ख आपात विपदा के मारे
अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहते बाबा को घेरे (97)
सुनकर जिनकी करूण कथा को, नयन कमल भर आते थे
दे विभूति हर व्यथा,शान्ति, उनके उर में भर देते थे (98)
जाने क्या अद्भुत,शक्ति, उस विभूति में होती थी
जो धारण करते मस्तक पर, दु:ख सारा हर लेती थी (99)
धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन, जो बाबा साईं के पाये
धन्य कमल-कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाये (100)
काश निर्भय तुमको भी, साक्षात साईं मिल जाता
बरसों से उजड़ा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता (101)
गर पकड़ता मैं चरण श्री के, नहीं छोड़ता उम्रभर
मना लेता मैं जरूर उनको, गर रूठते साईं मुझ पर (102)
|| Shri Sai Chalisa Meaning In Hindi || श्री साँई चालीसा हिंदी अर्थ सहित ||
श्री साँई के चरणों में, अपना शीश नवाऊं मैं
कैसे शिरडी साँई आए, सारा हाल सुनाऊ मैं (1)
अर्थ: मैं विनम्रतापूर्वक अपना सिर झुकाता हूं और हमारे भगवान श्री साईं बाबा के चरणों में समर्पण करता हूं; मैं समझाता हूं कि श्री साईं बाबा शिरडी कैसे पहुंचे थे।
कौन है माता, पिता कौन है, यह न किसी ने भी जाना
कहां जन्म साँई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना (2)
अर्थ: श्री साईं बाबा की माता कौन है और पिता कौन है, यह कोई नहीं जानता। शुरू से ही, श्री साईं बाबा का जन्म कहाँ हुआ था, इसका विवरण एक रहस्य बना हुआ है।
कोई कहे अयोध्या के, ये रामचन्द्र भगवान हैं
कोई कहता साँई बाबा, पवन-पुत्र हनुमान हैं (3)
अर्थ: कुछ लोग कहते हैं कि श्री साईं बाबा अयोध्या (भगवान श्री राम की जन्मभूमि) से आए हैं। वे उन्हें भगवान श्री राम का एक और अवतार भी मानते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि श्री साईं बाबा वायु (पवन) के पुत्र भगवान श्री हनुमान हैं।
कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानन हैं साँई।
कोई कहता गोकुल-मोहन, देवकी नन्द्न हैं साँई (4)
अर्थ: कुछ लोग कहते हैं कि श्री साईं बाबा शुभ देवता भगवान गणेश के अवतार हैं। कुछ लोगों का कहना है कि श्री साईं बाबा देवकी, भगवान कृष्ण के पुत्र हैं, जो गोकुल के प्रिय थे, जिस स्थान पर श्री कृष्ण का पालन-पोषण हुआ था।
शंकर समझ भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते
कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साँई की करते (5)
अर्थ: भगवान श्री शंकर के कई भक्त श्री साईं बाबा की पूजा करते हैं जो उन्हें भगवान शिव के रूप में पहचानते हैं। कई अन्य लोगों का कहना है कि श्री साईं बाबा श्री दत्तात्रेय, योग के भगवान और पहले आध्यात्मिक गुरु के अवतार हैं। वे ऐसा विचार कर श्री साईं बाबा की पूजा करते हैं।
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साँई हैं सच्चे भगवान
बड़े दयालु, दीनबन्धु, कितनों को दिया जीवनदान (6)
अर्थ: चाहे आप उन्हें कुछ भी समझें या मानें, श्री साईं बाबा ही सच्चे भगवान हैं। वह बहुत दयालु है और गरीबों और दलितों के करीब है। उन्होंने असंख्य लोगों को जीवन का आशीर्वाद दिया है।
कई बरस पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात
किसी भाग्यशाली की शिरडी में, आई थी बारात (7)
अर्थ: मैं एक घटना का विवरण दूंगा जो बहुत पहले हुई थी। किसी व्यक्ति के पास परम सौभाग्य और आशीर्वाद था, उसकी बारात शिरडी से गुजर रही थी।
आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुनदर
आया, आकर वहीं बद गया, पावन शिरडी किया नगर (8)
अर्थ: बारात के साथ एक बेहद खूबसूरत नौजवान लड़का आया था। शिरडी पहुँचने पर, उन्होंने वहाँ रहने का फैसला किया और शिरडी को एक पवित्र और पवित्र स्थान बना दिया।
कई दिनों तक रहा भटकता, भिक्षा मांगी उसने दर-दर।
और दिखाई ऎसी लीला, जग में जो हो गई अमर (9)
अर्थ: वह युवक शिरडी के चारों ओर घूम रहा था। उन्होंने घर-घर जाकर भिक्षा ली (जैसे कोई सन्यासी भिक्षा मांग रहा हो - जिसके पास कुछ भी न हो)। उसने बहुत अच्छे पवित्र चमत्कार भी किए थे। उनकी महिमा की चर्चा हो रही थी और दुनिया भर में अनंत काल तक फैल रही थी।
जैसे-जैसे उमर बढ़ी, बढ़ती ही वैसे गई शान
घर-घर होने लगा नगर में, साँई बाबा का गुणगान (10)
अर्थ: जब वह बालक बड़ा हो रहा था, उसकी लोकप्रियता, यश और कीर्ति भी व्यापक होती जा रही थी। शिरडी का हर घर श्री साईं बाबा के गुणों का जाप करने लगा था।
दिग दिगन्त में लगा गूंजने, फिर तो साँई जी का नाम
दीन मुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम (11)
अर्थ: श्री साईं बाबा के नाम के जाप से निकली गुंजन से ब्रह्मांड की सभी दिशाएं और कोने-कोने स्पंदित हो गए थे। श्री साईं बाबा का प्राथमिक कार्य गरीबों और दलितों की रक्षा करना और उनके कष्टों का निवारण करना है।
बाबा के चरणों जाकर, जो कहता मैं हूं निर्धन
दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते द:ख के बंधन (12)
अर्थ: जब कोई दरिद्र व्यक्ति श्री साईं बाबा के पवित्र चरणों में शरण लेता है, तो ऐसे गरीब व्यक्ति को दया और परोपकार का आशीर्वाद मिलता है। वह बोझ और दर्द के सभी अवरोधक बंधनों से मुक्त हो जाता है।
कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझ को संतान।
एवं अस्तु तब कहकर साँई, देते थे उसको वरदान (13)
अर्थ: किसी अन्य समय में, जब एक निःसंतान महिला ने श्री साईं बाबा से एक बच्चे का वरदान मांगा था, तो श्री साईं बाबा ने "अवुम अस्थु" का अर्थ "ऐसा होने दो" कहा था और उसे वरदान के साथ आशीर्वाद दिया था।
स्वयं दु:खी बाबा हो जाते, दीन-दुखी जन का लख हाल
अंत:करन भी साँई का, सागर जैसा रहा विशाल (14)
अर्थ: जब श्री साँई बाबा गरीबों और बीमार लोगों को देखते हैं, तो वे स्वयं दुखी होते हैं। श्री साईं बाबा की पवित्र आत्मा समुद्र के समान विशाल और विशाल है।
भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत बड़ा धनवान
माल खजाना बेहद उसका, केवल नहीं रही संतान (15)
अर्थ: दक्षिण भारत के एक भक्त जो धनी, समृद्ध और समृद्ध थे, ने श्री साईं बाबा के दर्शन किए थे। हालाँकि उक्त भक्त के पास सभी सांसारिक खजाने थे, लेकिन उसके पास एक बच्चे की कमी थी और उसी की लालसा थी।
लगा मनाने साँईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो
झंझा से झंकृत नैया को, तुम ही मेरी पार करो (16)
अर्थ: उस निःसंतान धनवान ने श्री साँई बाबा की दया की याचना की थी। उन्होंने श्री साईं बाबा को अपनी दुर्दशा के बारे में समझाने की कोशिश की। उन्होंने श्री साईं बाबा से कहा कि उनका जीवन अशांत और अशांत जल में एक नाव है और उन्होंने तट पर आने के लिए श्री साईं बाबा की मदद मांगी।
कुलदीपक के बीना अंधेरा, छया हुआ घर में मेरे
इसे लीये आया हूं बाबा होकर शरनागत तेरे (17)
अर्थ: उस नि:संतान धनवान ने कहा था कि परिवार की पीढ़ियों को पालने के लिए वारिस के बिना उसके घर में अंधेरा पसरा हुआ है। उसने यह भी कहा कि वह श्री साईं बाबा के चरणों में बिना किसी शर्त के स्वयं को समर्पित करने के लिए श्री साईं बाबा के पास आया था।
कुलदीपक के अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया
आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया (18)
अर्थ: उन्होंने आगे कहा था कि संतान के अभाव में उनका जीवन व्यर्थ है और उनका धन व्यर्थ है। उन्होंने उत्साहपूर्वक प्रार्थना की “श्री साईं बाबा, मैं अपनी दौलत के बावजूद, आपके पास एक भिखारी के रूप में आया था; मैंने आपकी शरण ली है, कृपया मेरी सहायता करें”।
दे दे मुझको पुत्र दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर
और किसी की आश न मुझको, सिर्फ भरोसा है तुम पर (19)
अर्थ: उन्होंने आगे अनुरोध किया था “श्री साईं बाबा, कृपया मुझे एक बच्चे का आशीर्वाद दें। मैं अपने पूरे जीवन में हमेशा आपका ऋणी और आभारी रहूंगा। मुझे किसी और पर आशा या विश्वास नहीं है। मैं ईमानदारी से अपना भरोसा केवल आप पर रखता हूं ”
अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में धर के शीश
तब प्रसन्न होकर बाबा ने दिया भक्त को यह आशीष (20)
अर्थ: उन्होंने पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ श्री साईं बाबा से प्रार्थना की थी। उन्होंने श्री साईं बाबा के चरणों में अपना शीश नवाया था। श्री साईं बाबा विनम्रता और ईमानदारी के कायल थे। तब उन्होंने उक्त भक्त को यह वरदान दिया।
अल्ला भला करेगा तेरा, पुत्र जन्म हो तेरे घर
कृपा रहे तुम पर उसकी, और तेरे उस बालक पर (21)
अर्थ: अल्लाह तुम्हारा भला करेगा। आपके घर संतान का जन्म होगा। ईश्वर की कृपा आप पर हमेशा बनी रहे। दया आपके बच्चे के साथ भी होगी।
अब तक नहीं किसी ने पाया, साँई की कृपा का पार
पुत्र रतन दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार (22)
अर्थ: आज तक, किसी भी व्यक्ति ने श्री साईं बाबा की कृपा से बढ़कर कुछ भी नहीं खोजा है। श्री साईं बाबा ने दक्षिण भारतीय भक्त को संतान का उपहार देकर उसके जीवन को एक शानदार वरदान प्रदान किया था।
तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार
सांच को आंच नहीं है कोई, सदा झूठ की होती हार (23)
अर्थ: कोई भी व्यक्ति भक्तिपूर्वक श्री साईं बाबा के नाम का जप करता है, वह हमेशा इस संसार के सभी लाभों का अनुभव करता है। सत्य का सामना कभी किसी प्रकार के खतरे से नहीं होता। कपट और झूठ की हमेशा हार होती है।
मैं हूं सदा सहारे उसके सदा रहूंगा उसका दास
साँई जैसा प्रभु मिला है इतनी की कम है क्या आद (24)
अर्थ: मैं श्री साईं बाबा की दया और समर्थन के कारण जीवित और जीवित हूं। मैं हमेशा उनका प्रबल भक्त और सेवक बना रहूंगा। श्री साईं बाबा मेरे भगवान हैं और मैंने उन्हें पा लिया है। यह आशीर्वाद अपने आप में मेरे लिए एक जबरदस्त विश्वास और आशा है।
मेरा भी दिन था इक ऎसा, मिलती नहीं मुझे थी रोटी
तन पर कपड़ा दूर रहा था, शेष रही नन्ही सी लंगोटी (25)
अर्थ: मेरे जीवन में भी एक बार ऐसा दौर आया था जब मुझे खाने के लिए रोटी तक नहीं मिली थी। मेरे शरीर पर, मेरे पास ओढ़ने के लिए अच्छे कपड़े नहीं थे; मेरे पास केवल एक छोटा लंगोटी था |
सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था
दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नि बरसाता था (26)
अर्थ: सामने बहती नदी थी। हालाँकि, मैं प्यासा रह गया था। मेरे दुर्भाग्य के दौर ने मुझ पर आग की लपटों की तरह दुख बरसाए थे।
धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलम्ब न था
बिना भिखारी में दुनिया में, दर-दर ठोकर खाता था (27)
अर्थ: पूरे ब्रह्माण्ड में, मेरे पास भूमि के अलावा कोई आश्रय/शरण लेने के लिए नहीं था (दफनाए जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था)। मैं इस संसार में भिक्षा का साधक बन गया था; मैं हर जगह से चोट और हमलों से पीड़ित हूं।
ऐसे में इक मित्र मिला जो, परम भक्त साँई का था
जंजालों से मुक्त, मगर इस, जगती में वह मुझसा था (28)
अर्थ: ऐसे में मुझे मेरे एक मित्र मिले थे; वह श्री साईं बाबा के प्रबल भक्त थे। वह अपने जीवन में संकटों से मुक्त हो गया था; हालाँकि, हालात ऐसे लग रहे थे कि वह बिल्कुल मेरे जैसा ही था।
बाबा के दर्शन के खातिर, मिल दोनों ने किया विचार
साँई जैसे दयामूर्ति के दर्शन को हो गए तैयार (29)
अर्थ: श्री साईं बाबा की खोज और दर्शन के उद्देश्य से, हमने (मैं और मेरे मित्र) ने एक साथ सोचा, चर्चा की और योजना बनाई। श्री साईं बाबा दया और परोपकार के अवतार हैं। हम श्री साईं बाबा के दर्शन के लिए तैयार थे।
पावन शिरडी नगर में जाकर, देखी मतवाली मूर्ति
धन्य जन्म हो गया कि हमने, जब धेकहि साईं की सूरति (30)
अर्थ: हम शिरडी के पवित्र शहर में गए और श्री साईं बाबा मूर्ति के दर्शन और दर्शन किए। हम विनम्र थे कि हमारा जन्म और जीवन धन्य हो गया जिस क्षण हमने उनके दिव्य रूप के दर्शन किए।
जबसे किये है दर्शन हमने, दु:ख सारा काफूर हो गया
संकट सारे मिठे और, विपदाओं का अंत हो गया (31)
अर्थ: जिस क्षण हमें श्री साईं बाबा के दर्शन का आशीर्वाद मिला, हमारे दुख दूर हो गए थे। हमारी सारी परेशानियां दूर हो गई थीं और हमारी मुश्किलें खत्म हो गई थीं।
मान और सम्मान मिला, भिक्षा में हमको बाबा से
प्रति बिंबित हो उठे जगत में, हम साँई की आभा से (32)
अर्थ: हम श्री साईं बाबा के दर्शन से भक्ति और विस्मय से धन्य और संपन्न हुए। यह श्री साईं बाबा द्वारा आशीर्वादित परम परोपकारी बंदोबस्त है।
बाबा ने सम्मान दिया है, मान दिया इस जीवन में
इसका ही सम्बल ले मैं, हंसता जाऊंगा जीवन में (33)
अर्थ: श्री साईं बाबा ने हमें हमारे जीवन में ईमानदारी, सम्मान और सम्मान दिया है। हम उनकी रक्षा के परोपकारी आश्रय की शरण लेते हैं और जीवन भर धन्य और सुखी रहेंगे।
साँई की लीला का मेरे, मन पर ऎसा असर हुआ
लगता, जगती के कण- कण मैं, जैसे हो वह भरा हुआ (34)
अर्थ: श्री साईं बाबा के दिव्य आशीर्वाद कार्यों का मेरे विचारों पर जबरदस्त प्रभाव है। वे मेरे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। मैं सचेत रूप से समझ सकता हूं कि इस दुनिया में प्रत्येक स्थान और स्थान श्री साईं बाबा की महानता से धन्य हैं।
”काशीराम” बाबा का भक्त, इस शिरडी में रहता था
मैं साँई का साँई मेरा, वह दुनिया से कहता था (35)
अर्थ: श्री काशीराम श्री साँई बाबा के अनन्य भक्त थे। वे शिरडी में रहते थे। वह ब्रह्मांड में एक और सभी को सुनाते थे, "मैं श्री साईं बाबा का हूँ और श्री साईं बाबा मेरे हैं"।
सींकर स्वयं वस्त्र बेचता, ग्राम नगर बाजारों में
झंकृत उसकी हृद तंत्री थी, साँई की झनकारों में (36)
अर्थ: वह कपड़े सिलता था और गांव-शहर के बाजारों में बेचता था। उनके दिल की धड़कन श्री साईं बाबा की दिव्य आवाज को प्रतिध्वनित करती थी।
स्तब्ध निशा थी, थे सोये, रजनी आंचल में चांद सितारे
नहीं सूझता रहा हाथ, को हाथ तिमिर के मारे (37)
अर्थ: हालाँकि चाँद चमक रहा था और तारे चमक रहे थे, रात बहुत अंधेरी थी। अंधेरा ऐसा था कि वह एक हाथ से दूसरे हाथ का पता नहीं लगा पा रहा था।
वस्त्र बेचकर लौट रहा था, हाय! हाट से काशी
विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन, आता था वह एकाकी (38)
अर्थ: उस अंधेरी रात में श्री काशीराम अपने वस्त्र बेचकर बाजार से वापस आ रहे थे। आश्चर्यजनक रूप से, वह काफी अकेला और अपने दम पर था।
घेर राह में खड़े हो गए, उसे कुटिल अन्यायी
मारो काटो लूटो इसको, ही ध्वनि पड़ी सुनाई (39)
अर्थ: रास्ते में अचानक उसे धोखेबाज और निर्दयी दिखने वाले कुछ लोगों ने रोक लिया। श्री काशीराम को केवल " मारो, मारो, लूटो" जैसे शब्द ही सुनाई दे रहे थे।
लूट पीटकर उसे वहां से, कुटिल गये चम्पत हो
आघातों से मर्माहत हो, उसने दी थी संज्ञा खो (40)
अर्थ: चोरों ने श्री काशीराम को पीटा, उनसे लूटपाट की और वहाँ से चले गये। उन्हें गंभीर चोटें, घाव और घाव मिले थे। गंभीरता के कारण उसके होश उड़ गए थे।
बहुत देर तक पड़ा रहा वह, वहीं उसी हालत में
जाने कब कुच होश हो उता, उसको केसी पलक में (41)
अर्थ: वह बहुत देर तक बिना होश के पड़ा रहा। लंबे समय के बाद, वह धीरे-धीरे ठीक हो गया था, खुद को इसकी जानकारी नहीं थी।
अनजाने ही उसके मुंह से, निकल पड़ा था साईं
जिसकी प्रतिध्वनि शिर्डी में, बाबा को पड़ी सुनाई (42)
अर्थ: वह असंगत रूप से और अपनी चेतना के बिना भी बड़बड़ाया था; उन्होंने श्री साईं बाबा के नाम का जाप किया था। शिरडी में उनकी आकर्षक प्रार्थना ध्वनि गूंज उठी थी; श्री साईं बाबा ने सहायता के लिए उनकी उत्कट पुकार सुनी थी।
क्षुब्ध उठा हो मानस उनका, बाबा गए विकल हो
लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सम्मुख हो (43)
अर्थ: श्री साईं बाबा के दिल में चोट लगी और वे बहुत परेशान हुए। ऐसा लग रहा था कि वह डकैती और मारपीट की पूरी घटना की कल्पना कर सकता है।
उन्मादी से इधर-उधर, तब बाबा लगे भटकने
सम्मुख चीजें जो भी आईं, उनको लगे पटकने (44)
अर्थ: अपने भक्त के सामने आई परेशानी ने श्री साईं बाबा को इतना परेशान कर दिया था कि वे व्याकुल मन से विभिन्न दिशाओं में व्याकुलता से चल रहे थे। उसकी आत्मा इतनी परेशान थी और उसकी चिंता में, वह अपनी घबराहट में रास्ते में आने वाली चीजों और वस्तुओं को उछालने लगा।
और धधकते अंगारों में, बाबा ने अपना कर डाला
हुए सशंकित सभी वहां, लख ताण्डव नृत्य निराला (45)
अर्थ: वहां मौजूद सभी लोगों को झटका लगा, श्री साईं बाबा ने लाल-गर्म कोयले और लपटों पर कदम रखा था। अपने गुस्से में, उन्होंने नृत्य करना शुरू कर दिया जो श्री शिव के रुद्र तांडवम के समान था।
समझ गए सब लोग कि कोई, भक्त पड़ा संकट में
क्षुभित खड़े थे सभी वहां पर पड़े हुए विस्मय में (46)
अर्थ: वहां मौजूद लोगों की पूरी सभा ने भांप लिया था कि श्री साईं बाबा का एक उत्साही भक्त किसी कठिनाई और खतरे में है। श्री साईं बाबा को देखने वाले लोग उनकी कृपा से अभिभूत पूरी तरह मौन में जड़ जमाये खड़े थे।
उसे बचाने के ही खातिर, बाबा आज विकल हैं
उसकी ही पीड़ा से पीड़ित, उनका अन्त:स्थल है (47)
अर्थ: श्री साईं बाबा उस दिन संकट और खतरे में फंसे भक्त की रक्षा करने की आवश्यकता को भांप कर इतने परेशान थे। श्री साईं बाबा का हृदय इतना उदार था कि वे अपने भक्त द्वारा झेली गई पीड़ा से बहुत दुखी थे।
इतने में ही विधि ने अपनी, विचित्रता दिखलाई
लख कर जिसको जनता की, श्रद्धा-सरिता लहराई (48)
अर्थ: उस समय विधाता ने अपना अद्भुत स्वरूप सिद्ध कर दिया था। अपने भक्त की पीड़ा पर श्री साईं बाबा की पीड़ा को देखकर, उनके पास के लोग भक्ति की भावना से भर गए।
लेकर कर संज्ञाहीन भक्त को गाड़ी एक वहां आई
सम्मुख अपने देख भक्त को साईं की आंखें भर आईं (49)
अर्थ: मूर्छित काशी को ले जाने वाले वाहन को श्री साईं बाबा के पास लाया गया। अपने भक्त की हालत देखकर श्री साईं बाबा की आंखों में आंसू भर आए।
शान्त धीर गम्भीर सिन्धु-सा बाबा का अन्त:स्थल
आज न जाने क्यों रह-रह कर हो जाता था चंचल (50)
अर्थ: श्री साईं बाबा की आत्मा हमेशा शांत, बलवान और समुद्र के समान थी। हालाँकि, उस दिन वह अपने भक्त की स्थिति पर चिंता और दुःख से अशांत था।
आज दया की मूर्ति स्वयं था, बना हुआ उपचारी
और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी (51)
अर्थ: आज, श्री साईं बाबा, दिव्य रूप स्वयं अपने सच्चे भक्त के लिए एक डॉक्टर बन गए थे। दयालु भगवान बन गए थे दर्द निवारक।
आज भक्ति की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था “काशी”
उसके ही दर्शन के खातिर, थे उमड़े नगर-निवासी (52)
अर्थ: श्री साईं बाबा की अनन्य भक्त काशी उनकी भक्ति के दम पर कठिन परीक्षा में सफल हुई थी। कस्बे के लोग उनके दर्शन के लिए एक साथ पहुंचे थे।
जब भी और जहां भी कोई, भक्त पड़े संकट में
उसकी रक्षा करने बाबा, आते हैं पलभर में (53)
अर्थ: श्री साईं बाबा अपने उत्साही भक्तों की रक्षा के लिए तुरंत प्रकट होते हैं और जब भी उक्त भक्त किसी कठिनाई और परेशानी में पड़ते हैं।
युग-युग का है सत्य यह, नहीं कोई नई कहानी
आपात ग्रस्त भक्त जब होता, आते खुद अन्तर्यामी (54)
अर्थ: श्री साईं बाबा अपने सच्चे भक्तों को जब भी कोई समस्या आती है तो हमेशा उनकी रक्षा करते हैं। यह नया नहीं है। ऐसा युगों-युगों से हो रहा है।
भेद-भाव से परे पुजारी, मानवता के थे साईं
जितने प्यारे हिन्दु-मुस्लिम, उतने ही थे सिक्ख ईसाई (55)
अर्थ: श्री साईं बाबा भेदभाव नहीं करते। वह पूरी मानवता के लिए हैं। उन्होंने हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों और अन्य सभी पर समान रूप से दया की है।
भेद-भाव मन्दिर-मस्जिद का, तोड़-फोड़ बाबा ने डाला
राम-रहीम सभी उनके थे, कृष्ण-करीम-अल्लाहताला (56)
अर्थ: श्री साईं बाबा ने धर्मों के बीच के भेदभाव को चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद, कम कर दिया था। राम और रहीम, कृष्ण, करीम और अल्लाह दोनों श्री साईं बाबा के हैं।
घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा, मस्जिद का कोना-कोना
मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम, प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना (57)
अर्थ: घंटी की गूँजती आवाज मस्जिद के कोनो में गूंज उठी। हिंदू और मुसलमान दोनों वहां इकट्ठा होते हैं और एक-दूसरे से मिलते हैं। उनकी आपसी सौहार्द दिन पर दिन कई गुना बढ़ जाती है।
चमत्कार था कितना सुंदर, परिचय इस काया ने दी
और नीम कडुवाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी (58)
अर्थ: लोगों के बीच यह एकता विचार करने के लिए जादुई रूप से सुंदर है। इस सद्भावना को श्री साईं बाबा ने भगवान के रूप में इस दुनिया में पेश किया है। श्री साईं बाबा की कृपा से नीम के कड़वे पत्ते भी मिठास से भर जाते हैं।
सबको स्नेह दिया साईं ने, सबको सन्तुल प्यार किया
जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उनको वही दिया (59)
अर्थ: श्री साईं बाबा सभी पर समान रूप से अपना प्रेम और आशीर्वाद बरसाते हैं। श्री साईं बाबा जो कुछ भी अपने भक्तों के लिए मांगते हैं, वह निश्चित रूप से उन्हें प्रदान करते हैं।
ऐसे स्नेह शील भाजन का, नाम सदा जो जपा करे
पर्वत जैसा दु:ख न क्यों हो, पलभर में वह दूर टरे (60)
अर्थ: श्री साईं बाबा प्रेम और करुणा से भरे संत हैं। जो व्यक्ति निरंतर उनके नाम का जाप करता है, उसके आशीर्वाद से पहाड़ के आकार की चिंता और उदासी भी दूर हो जाती है।
साईं जैसा दाता हमने, अरे नहीं देखा कोई
जिसके केवल दर्शन से ही, सारी विपदा दूर हो गई (61)
अर्थ: श्री साईं बाबा अपने भक्तों के प्रति बहुत दयालु हैं। यहां तक कि उनके सरल दर्शन से भी सभी चिंताएं और दर्द दूर हो जाते हैं।
तन में साईं, मन में साईं, साईं-साईं भजा करो
अपने तन की सुधि-बुधि खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो (62)
अर्थ: श्री साईं बाबा हमारे मन, शरीर और आत्मा में भरे हुए हैं। "साईं, साईं" का जाप करते रहें। आप अपने शरीर के प्रति जागरूक होना छोड़ देते हैं। आप केवल श्री साईं बाबा पर ध्यान केंद्रित करें और ध्यान करें।
जब तू अपनी सुधि तज, बाबा की सुधि किया करेगा
और रात-दिन बाबा, बाबा ही तू रटा करेगा (63)
अर्थ: एक बार जब आप अपने आप को मोटा करना बंद कर देते हैं और श्री साईं बाबा का ध्यान करना शुरू कर देते हैं, तो दिन और रात के दौरान, आप हर समय केवल "बाबा, बाबा" का जाप करते रहेंगे।
तो बाबा को अरे! विवश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी
तेरी हर इच्छा बाबा को, पूरी ही करनी होगी (64)
अर्थ: श्री साईं बाबा के आपके अनंत जप से, वह निश्चित रूप से आप पर ध्यान देंगे और वह आपकी सभी इच्छाओं पर विचार करेंगे और आपकी हर इच्छा पूरी करेंगे।
जंगल-जंगल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को
एक जगह केवल शिर्डी में, तू पायेगा बाबा को (65)
अर्थ: अरे अज्ञानी मन! आप श्री साईं बाबा की शरण में जगह-जगह भटकने से बचें। वे आपको केवल शिरडी में ही मिलेंगे।
धन्य जगत में प्राणी है वह, जिसने बाबा को पाया
दु:ख में सुख में प्रहर आठ हो, साईं का ही गुण गाया (66)
अर्थ: श्री साईं बाबा के भक्त जिन्होंने उनकी शरण ली है, वे धन्य हैं। सुख में, दुःख में और प्रत्येक दिन के आठ प्रहरों में, वह केवल श्री साईं बाबा के नाम का गुणगान करता है।
गिरें संकटों के पर्वत, चाहे बिजली ही टूट पड़े
साईं का ले नाम सदा तुम, सम्मुख सब के रहो अड़े (67)
अर्थ: श्री साईं बाबा के नाम का स्मरण करने वाला भक्त बिजली गिरने पर भी सभी संकटों का बहादुरी से सामना कर सकता है। श्री साईं बाबा के आशीर्वाद से उसके सारे संकटों का पहाड़ मिट जाएगा।
इस बूढ़े की करामात सुन, तुम हो जाओगे हैरान
दंग रह गये सुनकर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान (68)
अर्थ: वृद्ध की यह कहानी जो भी सुनेंगे, वे स्तब्ध रह जाएंगे। कहानी से कई बुद्धिमान लोग चौंक गए।
एक बार शिर्डी में साधू, ढ़ोंगी था कोई आया
भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया (69)
अर्थ: बहुत पहले, एक व्यक्ति ने शिरडी का दौरा किया था जो एक साधु के रूप में प्रकट हुआ था और वह एक धोखेबाज था। उसके द्वारा नगर के भोले भाले लोगों को गुमराह किया गया।
जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर, करने लगा वहां भाषण
कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन (70)
अर्थ: साधु ने निवासियों को विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियाँ दिखाईं और उनसे कहा “मेरी बात सुनो; मेरा घर वृंदावन में है”।
औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शक्ति
इसके सेवन करने से ही, हो जाती दु:ख से मुक्ति (71)
अर्थ: मेरे पास एक अनोखी हीलिंग दवा है; इसमें अद्भुत शक्तियाँ हैं; इस दवा की खुराक और उपयोग सभी दर्द और चिंताओं को दूर करता है।
अगर मुक्त होना चाहो तुम, संकट से बीमारी से
तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से हर नारी से (72)
अर्थ: हे यहाँ के स्त्री-पुरूषों, यदि आप चिंताओं और व्याधियों से मुक्त होना चाहते हैं, तो यह मेरा आपसे सबसे विनम्र अनुरोध है।
लो खरीद तुम इसको इसकी, सेवन विधियां हैं न्यारी
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह, गुण उसके हैं अति भारी (73)
अर्थ: आप लोग आगे आयें और इस दवा को प्राप्त करें; देखने में भले ही यह तुच्छ लगता है, लेकिन इसके उपयोग में अद्वितीय लाभ हैं और परिणाम बहुत बड़े हैं।
जो है संतति हीन यहां यदि, मेरी औषधि को खायें
पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे वह मुंह मांगा फल पायें (74)
अर्थ: यदि यहां कोई संतान विहीन व्यक्ति हो तो उसे यह औषधि दी जा सकती है। उसे संतान की प्राप्ति होगी और अन्य मनोकामनाएं भी पूर्ण होंगी।
औषधि मेरी जो न खरीदे, जीवन भर पछतायेगा
मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहां आ पायेगा (75)
अर्थ: जिन व्यक्तियों को मुझसे दवा नहीं मिलती वे जीवन भर अपनी मूर्खता पर पछताते रहेंगे। मेरे जैसा व्यक्ति दोबारा इस स्थान पर जाने की संभावना नहीं है।
दुनियां दो दिन का मेला है, मौज शौक तुम भी कर लो
गर इससे मिलता है, सब कुछ तुम भी इसको ले लो (76)
अर्थ: दुनिया दो दिन चलने वाली प्रदर्शनी की तरह है। आपको यथासंभव आनंद लेना चाहिए और अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहिए। यदि आप मुझसे चमत्कारी औषधि खरीदते हैं, तो आपकी मनोकामना पूरी होगी।
हैरानी बढ़ती जनता की लख इसकी कारस्तानी
प्रमुदित वह भी मन ही मन था, लख लोगो की नादानी (77)
अर्थ: जिन लोगों ने उनके दावों को सुना था, वे उनके भाषण और कार्यों से चकित थे। भोले, अज्ञानी और भोले-भाले लोगों की विशाल भीड़ को देखकर साधु भी प्रसन्न हुआ।
खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौड़कर सेवक एक
सुनकर भृकुटि तनी और, विस्मरण हो गया सभी विवेक (78)
अर्थ: श्री साईं बाबा के भक्तों में से एक साधु की खबर के बारे में बताने के लिए उनके पास दौड़ा। श्री साईं बाबा हैरान और परेशान थे। उनकी शांति की भावना टूट गई थी।
हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ
या शिर्डी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ (79)
अर्थ: श्री साईं बाबा ने अपने अनुयायियों को आदेश दिया था कि या तो धोखेबाज़ साधु को अपने पास लाओ या साधु को जबरदस्ती शिरडी की सीमाओं से भगाओ।
मेरे रहते भोली-भाली, शिर्डी की जनता को
कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को (80)
अर्थ: श्री साईं बाबा ने कहा, "जब तक मैं यहां हूं, मैं शिरडी के निर्दोष लोगों को इस नीच व्यक्ति द्वारा ठगे जाने की अनुमति नहीं दूंगा।
पल भर में ही ऐसे ढ़ोंगी, कपटी नीच लुटेरे को
महानाश के महागर्त में, पहुंचा दूं जीवन भर को (81)
अर्थ: मैं इस नीच प्राणी को, जो एक कपटी, पाखंडी और चोर है, घटियापन के सबसे बुरे रूप के अधीन कर दूंगा। वह जीवन भर कष्ट उठाएगा।
तनिक मिला आभास मदारी क्रूर कुटिल अन्यायी को
काल नाचता है अब सिर पर गुस्सा आया साईं को (82)
अर्थ: श्री साईं बाबा उसके कार्यों से क्रोधित थे। उसने कहा, “मैं इस क्रूर और कुटिल जादूगर को देखना चाहता हूँ। उसका समय उसके सिर के ऊपर मंडरा रहा है ”।
पल भर में सब खेल बन्द कर भागा सिर पर रखकर पैर
सोच था मन ही मन, भगवान नहीं है अब खैर (83)
अर्थ: उसी समय ठग साधु को यह आभास हो गया कि वह ईश्वर के दंड से बच सकता है। इसलिए उसने अपना ठगी का काम बंद कर दिया और शहर से भागने के लिए भाग गया।
सच है साईं जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में
अंश ईश का साईंबाबा, उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में (84)
अर्थ: श्री साईं बाबा जैसे उपकारी ब्रह्मांड में कहीं भी नहीं मिल सकते हैं। जब श्री साईं बाबा आशीर्वाद देते हैं और भक्त के साथ होते हैं, तो भक्त के लिए दुनिया में कुछ भी कठिन नहीं होता है।
स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभूषण धारण कर
बढ़ता इस दुनिया में जो भी, मानव-सेवा के पथ पर (85)
अर्थ: मनुष्य जब मानवता की सेवा के पथ पर संसार में उन्नति करना चाहता है तो वह मित्रता, नम्रता, स्नेह और दया को आभूषण के रूप में सुशोभित करता है।
वही जीत लेता है जगती के, जन-जन का अन्त:स्थल
उसकी एक उदासी ही जग को कर देती है विह्वल (86)
अर्थ: श्री साईं बाबा ही हैं जो ब्रह्मांड पर हावी हैं। वह सभी प्राणियों की आत्माओं में मौजूद है। यदि वे स्वयं थोड़ा भी दु:खी होते हैं तो यह संसार को पंगु बना देगा।
जब-जब जग में भार पाप का, बढ़ बढ़ ही जाता है
उसे मिटाने के ही खातिर, अवतारी ही आता है (87)
अर्थ: जब और जब दुनिया के पाप बहुत भारी हो जाते हैं, तो भगवान श्री महा विष्णु उन पापों को कम करने के लिए अवतार लेते हैं।
पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के
दूर भगा देता दुनिया के, दानव को क्षण भर में (88)
अर्थ: श्री महा विशु के उक्त अवतार संसार के सभी पापों और अन्याय को नष्ट और नष्ट कर देते हैं। उनकी उपस्थिति में सभी राक्षस भाग जाते हैं।
स्नेह सुधा की धार बरसने, लगती है इस दुनिया में
गले परस्पर मिलने लगते, हैं जन-जन आपस में (89)
अर्थ: इस संसार पर परमात्मा के अमृत और प्रेम की वर्षा होने लगती है। भक्त आपस में स्नेह से गले मिलने लगे।
ऐसे ही अवतारी साईं, मृत्युलोक में आकर
समता का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप मिटाकर (90)
अर्थ: श्री साईं बाबा ऐसे ही अवतार हैं जिन्होंने इस संसार में जन्म लिया। उन्होंने स्वार्थों को तवज्जो न देकर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और समानता की भावना का पाठ पढ़ाया था।
नाम द्वारका मस्जिद का, रक्खा शिर्डी में साईं ने
दाप, ताप, सन्ताप मिटाया, जो कुछ आया साईं ने (91)
अर्थ: शिरडी में, श्री साईं बाबा ने एक मस्जिद को द्वारका कहा था, जो इसे श्री कृष्ण के जन्मस्थान के समान बनाता है। उन्होंने क्रोध, बीमारी, चिंता, परेशानी और अन्य समस्याओं को दूर कर दिया था।
सदा याद में मस्त राम की, बैठे रहते थे साईं
पहर आठ ही राम नाम का, भजते रहते थे साईं (92)
अर्थ: श्री साईं बाबा दिन के सभी आठ प्रहरों में भगवान श्री राम के सुंदर विचारों और मंत्रों के साथ निरंतर ध्यान में हैं।
सूखी-रूखी, ताजी-बासी, चाहे या होवे पकवान
सदा प्यार के भूखे साईं की, खातिर थे सभी समान (93)
अर्थ: श्री साईं बाबा को केवल प्रेम और करुणा की भूख थी; अन्यथा सभी भोजन चाहे वह ताजा हो या पुराना या सूखा या झुर्रीदार, उसके लिए समान रूप से अच्छा है।
स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे
बड़े चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे (94)
अर्थ: श्री साईं बाबा हमेशा अपने भक्तों द्वारा चढ़ाए गए किसी भी भोजन को स्वीकार करते हैं और उसी को उत्साह के साथ खाते हैं और इसे एक धन्य प्रसाद बनाते हैं।
कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग में जाते थे
प्रमुदित मन निरख प्रकृति, छटा को वे होते थे (95)
अर्थ: श्री साईं बाबा कभी-कभी बगीचे में जाते हैं और प्रकृति का अवलोकन करते हैं। यह उनके मन को शांत करता है और उन्हें प्रसन्न करता है।
रंग-बिरंगे पुष्प बाग के, मन्द-मन्द हिल-डुल करके
बीहड़ वीराने मन में भी, स्नेह सलिल भर जाते थे (96)
अर्थ: रंग-बिरंगे बगीचे के फूल ऐसे झूमते थे जैसे मदहोशी में हों। उनकी दृष्टि शांत और शांतिपूर्ण मन में भी प्रेम और करुणा लाएगी।
ऐसी सुमधुर बेला में भी, दु:ख आपात विपदा के मारे
अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहते बाबा को घेरे (97)
अर्थ: श्री साईं बाबा उन लोगों से घिरे हुए हैं जो परेशान हैं, चिंता, दुख और परेशानियों से पीड़ित हैं, जो उन पर अपना कहर बरसा रहे हैं।
सुनकर जिनकी करूण कथा को, नयन कमल भर आते थे
दे विभूति हर व्यथा,शान्ति, उनके उर में भर देते थे (98)
अर्थ: श्री साईं बाबा जब भी अपने भक्तों का दुख सुनते तो उनकी आंखों में आंसू भर आते थे। उन्होंने उन्हें पवित्र राख दी जिससे उनके दर्द कम हो गए और उन्हें मन की शांति से भर दिया।
जाने क्या अद्भुत,शक्ति, उस विभूति में होती थी
जो धारण करते मस्तक पर, दु:ख सारा हर लेती थी (99)
अर्थ: यह वास्तव में अद्भुत है कि एक बार पवित्र विभूति को माथे पर लगाने से सभी चिंताएं और उदासी दूर हो जाती हैं।
धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन, जो बाबा साईं के पाये
धन्य कमल-कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाये (100)
अर्थ: जो लोग श्री साईं बाबा के दर्शन पाते हैं वे धन्य हो जाते हैं। उनमें से जिन लोगों को श्री साईं बाबा के पवित्र चरणों को छूने का अवसर मिला, वे बहुत धन्य हैं।
काश निर्भय तुमको भी, साक्षात साईं मिल जाता
बरसों से उजड़ा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता (101)
अर्थ: श्री साईं बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करना आपको निर्भय बनाता है। उनका आशीर्वाद आपके जीवन को एक सूखी भूमि से एक खिले हुए रंगीन बगीचे में बदल देता है।
गर पकड़ता मैं चरण श्री के, नहीं छोड़ता उम्रभर
मना लेता मैं जरूर उनको, गर रूठते साईं मुझ पर (102)
अर्थ: मैं श्री साईं बाबा के पवित्र चरणों को पकड़ लूंगा और मैं उन्हें अपने जीवन के लिए कभी नहीं छोड़ूंगा। भले ही मैंने उन्हें क्रोधित करने के लिए कुछ किया हो, उनके चरणों को दृढ़ता से पकड़कर, मैं उन्हें मुझे क्षमा करने में सक्षम बना सकूंगा।